Sanjay Singh vs. Akash Soam (Round 1, FTC 2014)
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Sanjay Singh vs. Akash Soam (Round 1, FTC 2014)
राष्ट्रीय खेल हाकी और जन साधारण की अनभिज्ञता
(Sanjay Singh)
2010 मे commonwealth games के दौरान मुझे भी हाकी मैच देखने का मौका मिला। मैं और मेरा दोस्त हम दोनो हाकी मैच का लुत्फ़ उठा रहे थे। मेरा दोस्त बार-बार कह रहा था कि अरे यार ये गोल क्यो नही कर रहे। इतना अच्छा मौका है। मैंने उसे समझाया कि हाकी मे गोल D के अंदर पहुंचने के बाद ही किया जाता है। तुझे इतना भी नही मालूम क्या। इस पर वो बोला कि उसे हाकी की सिर्फ उतनी ही समझ है जितनी चक दे इंडिया मे उसने देखी थी।
ये सुनकर मैं थोडा हैरान हुआ। लोगो को अपने राष्ट्रीय खेल के नियमो की ही जानकारी नही है। यही दर्शाता है कि राष्ट्रीय खेल के प्रति उनमें कितना लगाव है। हाकी की घटती लोकप्रियता और हमारे खिलाडियों के इसमे निराशाजनक प्रदर्शन के बारे मे अक्सर सुनने को मिलता है। हाकी से लोगो को जोडने के लिए उन्हे भारतीय हाकी के इतिहास के बारे मे बताना बहुत जरुरी है। मैं यहाँ आप लोगो को हाकी के नियम नही बल्कि भारतीय हाकी के स्वर्णिम काल के कुछ ऐसे किस्से बताना चाहता हूँ कि जिससे जन साधारण को भारतीय हाकी के गौरवशाली इतिहास के बारे मे जान सकेंगे। और उम्मीद करता हूँ कि आप लोग भी अपने राष्ट्रीय खेल कि प्रति फिर से आकर्षित हो पाएंगे।
2008 चीन ओलम्पिक। हाकी जगत मे खलबली।
चीन 2008 ओलम्पिक मे सभी हाकी खेलने वाले राष्ट्र बहुत ही दुखी और आश्चर्य मे थे। क्योंकि भारत 2008 ओलम्पिक के लिए qualify नही कर पाया था। क्या ये बहुत बडा मुद्दा था? और भी तो खेल है जिनमे भारत भाग नही लेता। तो फिर हाकी के लिए ही इतनी हाय-तौबा क्यों थी? क्या सिर्फ इसलिए कि हाकी राष्ट्रीय खेल है। जी नही सिर्फ इसलिए नही कि ये भारत का राष्ट्रीय खेल है। बल्कि इसलिए कि जो देश आठ बार का ओलम्पिक चैम्पियन रह चुका हो (पांच बार लगातार) उसका इतने बडे खेल उत्सव मे अनुपस्थित रहना बहुत ही अखरता है। जी हाँ हम आठ बार के ओलम्पिक चैम्पियन है। और किसी भी राष्ट्र के लिए ये उपलब्धि हासिल करना अभी भी एक स्वप्न ही है। बाकी हाकी खेलने वाले राष्ट्रों के लिए भारत की ये उपलब्धि एक प्रेरणा स्रोत का काम करती है। इसलिए भारत के 2008 चीन ओलम्पिक मे हाकी ना खेलने का मलाल देशवासियों को हो या ना हो कम से कम दूसरे हाकी खेलने वाले राष्ट्रों को तो था ही।
2008 का ओलम्पिक अगर भारतीय हाकी के ऊपर लगा एक कलंक था तो 2012 लंदन ओलम्पिक ने उस कलंक को और काला कर दिया। हम ने इस ओलम्पिक मे एक भी मैच नही जीता और अपने सारे मैच हारते हुए (यहाँ तक कि सबसे कमजोर टीम दक्षिण अफ्रीक से भी हार गए) अंतिम स्थान पर रहे।
विश्व कप विजेता, ऐशियन गेम्स विजेता और अन्य उपलब्धियां।
आठ बार के ओलम्पिक चैम्पियन होने के अलावा हम एक बार के विश्व विजेता भी रह चुके है। साथ ही दो बार के ऐशियन गेम्स विजेता और दो बार के ही एशिया कप विजेता भी रह चुके है। इसके अलावा कामनवैल्थ गेम्स मे भी हमारा प्रदर्शन शानदार रहा है। एक बार ही आयोजित ऐफ्रो ऐशियन गेम्स मे भी हमने स्वर्ण पदक जीता था। अंतराष्ट्रीय स्तर जितनी उपलब्धियां हमने हाकी मे हासिल करी है उतनी किसी भी टीम स्पर्धा वाले खेल मे हासिल नही करी।
रोचक तथ्य। क्या आप जानते है?
भारत मे राष्ट्रीय खेल दिवस हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद के जन्म दिवस के अवसर पर 29 अगस्त को मनाया जाता है।
1932 ओलम्पिक मे भारत ने एक मैच मे अमेरिका को 24-1 से हराया था। अमेरिका की तरफ से गोल भी इसलिए हो पाया क्योंकि भारत का गोल कीपर ओटोग्राफ देने के लिए गोल पोस्ट छोड कर चला गया था। इस रिकार्ड को टूटने मे सात दशक का समय लगा।
मेजर ध्यान चंद के खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हे जर्मन टीम को प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया था जिसके बदले मे एक बडा सैनिक पद उन्हे मिलना था। मेजर ध्यान चंद ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था।
हाकी मे पिछडने की मुख्य वजह।
भारतीय हाकी के गिरे हुए स्तर की मुख्य वजह हाकी के खेल मे हुई तबदीलियां है। इसमे सबसे बडी तबदीली है कि काफी समय से हाकी के मैच अब टर्फ के मैदान पर होते है। जब यूरोपियन देश घास के मैदान पर भारत को हराने मे नाकामयाब रहे तो उन्होने अपनी टर्फ के मैदान पर हाकी खेलने के प्रस्ताव की सिफारिश करी। और जब से ये लोग टर्फ के मैदान पर उतरे है भारतीय हाकी इनके सामने टिक नही पाई है। क्योंकि भारत मे निचले स्तरों पर अभी भी हाकी घास के मैदान पर ही खेली जाती है। सिर्फ बडे स्टेडियमो मे ही टर्फ के मैदान उपलब्ध है।
हाकी की लोकप्रियता मे कमी एक और वजह क्रिकेट की बढती हुई लोकप्रियता है। 1983 की विश्व कप जीत के बाद से इस खेल मे लोगो की अभिरुचि एकदम से काफी बढ गई थी। अब तो हालात ये है कि ये खेल भारत मे एक धर्म का रुप ले चुका है। इस खेल मे पैसे और शोहरत को देखते हुए हर कोई अपने बच्चों को क्रिकेटर ही बनाना चाहता है। हाकी खेलने के लिए उन्हे कोई प्रेरित नही करता।
प्रयास जारी है और उम्मीदें बरकरार।
2008 ओलम्पिक के बाद से भारतीय हाकी के कर्ता-धर्ताओ की नींद टूटी। और उन्होने इस खेल मे सुधार के लिए प्रयास आरम्भ किए। विदेशी कोच बुलाए गए। साथ ही 2008 ओलम्पिक के रजत पदक विजेता इटली के एक खिलाडी Shanti Marella ने एक प्रोग्राम stick2hockey के अंतर्गत भारत आकर हाकी खेलने वाले स्कूली बच्चो को खास प्रशिक्षण दिया। देश मे छिपी हुई प्रतिभाओं को बाहर लाने के लिए विदेशी भी हमारी मदद करने को तैयार है। इनके अलावा आई पी एल की ही तर्ज पर अब हाकी इंडिया लीग का आयोजन किया गया है। इस लीग को अब दो साल हो चुके है।
लेकिन जब तक अवाम इस खेल से अपने आप को नही जोड पाएगा तब तक हाकी और इसके खिलाडियों को प्रेरणा और मनोबल नही मिल पाएगा। इसलिए सभी देशवासियों को अपने राष्ट्रीय खेल को सम्मान देना चाहिए। उम्मीद करता हूं कि मेरे इस लेख से आप लोगो के मन मे हाकी के प्रति थोडी बहुत रुचि उत्पन्न हो गई होगी और इस साल हो रहे हाकी वलर्ड कप मे आप अपने देश को भरपूर समर्थन देंगे।
Rating - 56/100
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My Love for Comics
(Akash Soam)
कॉमिक्स मेरे बचपन का अहम् हिस्सा थी | बहुत सारी विषमताओं के बावजूद, बचपन को रंग बिरंगा और यादगार बनाने में कॉमिक्स का अहम् रोल रहा हैं | कॉमिक्स को अलग करके कम से कम मेरे बचपन को तो परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता | बड़े हुए तो, ज़िंदगी की उलझनें बढ़ी और कॉमिक्स कहीं पीछे छूट गयी | लेकिन अच्छी यादों की तरह, दिल का एक कोना कॉमिक्स के लिए रिज़र्व ही रहा | 5-6 महीने पहले, जब फेसबुक के माध्यम से ध्रुव को बनाने वाले अनुपम सिन्हा सर से मुलाकात हुई, तो बचपन की बहुत सारी यादें फिर से ताज़ा हो गयीं |
थोड़े दिन पहले कॉमिक्स फेस्ट 2013 आयोजित किया गया | जैसे ही मुझे फेसबुक के माध्यम से फेस्ट के आयोजन का पता चला, मैंने खुद को फेस्ट के लिए रजिस्टर करा लिया | फेस्ट दो दिन के लिए था | जोकि दिल्ली हाट प्रीतमपुरा में आयोजित किया गया था | मैं बस पहले दिन ही जा पाया | दिल्ली हाट में प्रवेश करते ही मानों कॉमिक्स का संसार शुरू हो गया था | शुरुआत में ही नागराज और ध्रुव के बड़े बड़े पोस्टर्स लगे थे जो असल में बता रहे थे कि यहाँ से अब उनका राज्य शुरू होता है |
कॉमिक्स संसार में प्रवेश करते ही, दायीं-बायीं दोनों तरफ कई कॉमिक्स स्टाल लगे हुए थे | जिन पर सैकड़ों लोग अपनी-अपनी पसंद की कॉमिक्स खरीद रहे थे | मेरी सबसे पहली मुलाकात आदरणीय चाचा चौधरी से हुई | सैकड़ों कॉमिक्स के कवर पेजों पर चाचा की सदाबहार मुस्कान साफ़ साफ़ कह रही थी कि इक्कीसवीं सदी के कंप्यूटर चाहे कितने भी तेज़ हो जाएँ लेकिन चाचा के सामने फेल ही रहेंगे, क्योंकि "चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है" |
चूँकि मैंने 90 के दशक में ही कॉमिक्स पढ़ना बंद कर दिया था इसलिए कई स्टाल्स की कॉमिक्स मेरे लिए नयी थी | लेकिन उन कॉमिक्स में इक्कीसवीं सदी का नयापन साफ-साफ़ झलक रहा था | अंत में मेरी पसंदीदा राज कॉमिक्स का स्टाल था | जहाँ हज़ारो की संख्या में राज कॉमिक्स के सुपरहीरोज़ की कॉमिक्स मौजूद थी | सबसे अधिक कॉमिक्स प्रेमी भी इसी स्टाल पर अपने-अपने पसंदीदा हीरो की कॉमिक्स खरीद रहे थे |
ध्रुव से बचपन से मेरा एक अलग तरह का लगाव रहा है | वो मेरा पसंदीदा हीरो है | स्टाल पर मैंने ध्रुव की अब तक की सारी कॉमिक्स की लिस्ट देखनी चाही, मगर वो मुझे नहीं मिल सकी, शायद वो वहाँ उपलब्ध ही नहीं थी | मैं असल में देखना चाहता था कि मैंने ध्रुव की कितनी कॉमिक्स पढ़ी हैं, और उसके बाद कितनी कॉमिक्स आयी है | पहले ऐसी लिस्ट लगभग सभी कॉमिक्स के कवर पेज के पीछे होती थी | सुपरहीरोज़ में भी, बदलते वक्त के साथ काफी बदलाव आये हैं | 90 के दशक में ध्रुव के बाल एक जेंटलमैन की तरह चिपके रहते थे, लेकिन आज Cool Dude की तरह हवा में लहराते हैं | वैसे समय के साथ बदलाव करना समय की ही मांग होती है |
वहाँ बहुत लोग ऐसे थे जो अपने बच्चों को नागराज और ध्रुव जैसे सुपर हीरो से मिलवाने लाये थे | लेकिन जिन रंग बिरंगी किताबों के लिए हम दीवाने थे, आज स्मार्ट फ़ोन के युग में वो बच्चों को शायद कुछ कम पसंद आतीं हैं |
फेस्ट को आकर्षित बनाने के लिए आयोजकों ने पूरी तैयारी की थी | कुछ registered लोगों को गिफ्ट बैग भी दिया गया | मुझे भी मिला | क्योंकि मैंने भी खुद को register करा लिया था | कुछ लोगों को बैग के साथ एक टी शर्ट भी दी गयी | गिफ्ट बैग के साथ, दोनों दिनों के चाय पानी के लिए कूपन भी दिए गए थे | स्टेज पर भी कई प्रोग्राम्स रखे गए थे | हालाकिं मैं 3-4 ही देख पाया | जिसमें से एक शिवाजी आर्यन का कॉमेडी शो था | जिसने लोगों को खूब आनंदित किया | स्टेज पर कई सुपर हीरो के हवा के बुत भी खड़े किये गए जो बहुत ही आकर्षित थे | कुछ लोग अपने पसंदीदा हीरो की वेषभूषा धारण किये हुए थे और लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे |
कॉमिक्स फेस्ट में जाकर मुझे लगा कि, ऐसे फेस्ट को आयोजित करने का मकसद, भारतीय कॉमिक्स के प्रति लोगों का interest बढ़ाना है | 90 का दशक इंडियन कॉमिक्स का स्वर्ण युग कहा जा सकता है | जब कॉमिक्स के लिए मेरे जैसे हज़ारों लाखों लोगों का दीवानापन चरम पर था | लेकिन उसके बाद आने वाली पीढ़ियों में इंडियन कॉमिक्स के लिए लगाव कम हो रहा है | आने वाली पीढ़ियों में इंडियन कॉमिक्स को एंटरटेनमेंट का एक बड़ा सोत्र बनाये रखने के लिए, कॉमिक्स फेस्ट जैसे Event का बड़े स्तरों पर आयोजन बहुत जरूरी है |
Rating - 52/100
Sanjay Singh wins the exhibition match by 5 points, this is his second FTC victory in three appearances. Akash Soam loses his debut match.
(Sanjay Singh)
2010 मे commonwealth games के दौरान मुझे भी हाकी मैच देखने का मौका मिला। मैं और मेरा दोस्त हम दोनो हाकी मैच का लुत्फ़ उठा रहे थे। मेरा दोस्त बार-बार कह रहा था कि अरे यार ये गोल क्यो नही कर रहे। इतना अच्छा मौका है। मैंने उसे समझाया कि हाकी मे गोल D के अंदर पहुंचने के बाद ही किया जाता है। तुझे इतना भी नही मालूम क्या। इस पर वो बोला कि उसे हाकी की सिर्फ उतनी ही समझ है जितनी चक दे इंडिया मे उसने देखी थी।
ये सुनकर मैं थोडा हैरान हुआ। लोगो को अपने राष्ट्रीय खेल के नियमो की ही जानकारी नही है। यही दर्शाता है कि राष्ट्रीय खेल के प्रति उनमें कितना लगाव है। हाकी की घटती लोकप्रियता और हमारे खिलाडियों के इसमे निराशाजनक प्रदर्शन के बारे मे अक्सर सुनने को मिलता है। हाकी से लोगो को जोडने के लिए उन्हे भारतीय हाकी के इतिहास के बारे मे बताना बहुत जरुरी है। मैं यहाँ आप लोगो को हाकी के नियम नही बल्कि भारतीय हाकी के स्वर्णिम काल के कुछ ऐसे किस्से बताना चाहता हूँ कि जिससे जन साधारण को भारतीय हाकी के गौरवशाली इतिहास के बारे मे जान सकेंगे। और उम्मीद करता हूँ कि आप लोग भी अपने राष्ट्रीय खेल कि प्रति फिर से आकर्षित हो पाएंगे।
2008 चीन ओलम्पिक। हाकी जगत मे खलबली।
चीन 2008 ओलम्पिक मे सभी हाकी खेलने वाले राष्ट्र बहुत ही दुखी और आश्चर्य मे थे। क्योंकि भारत 2008 ओलम्पिक के लिए qualify नही कर पाया था। क्या ये बहुत बडा मुद्दा था? और भी तो खेल है जिनमे भारत भाग नही लेता। तो फिर हाकी के लिए ही इतनी हाय-तौबा क्यों थी? क्या सिर्फ इसलिए कि हाकी राष्ट्रीय खेल है। जी नही सिर्फ इसलिए नही कि ये भारत का राष्ट्रीय खेल है। बल्कि इसलिए कि जो देश आठ बार का ओलम्पिक चैम्पियन रह चुका हो (पांच बार लगातार) उसका इतने बडे खेल उत्सव मे अनुपस्थित रहना बहुत ही अखरता है। जी हाँ हम आठ बार के ओलम्पिक चैम्पियन है। और किसी भी राष्ट्र के लिए ये उपलब्धि हासिल करना अभी भी एक स्वप्न ही है। बाकी हाकी खेलने वाले राष्ट्रों के लिए भारत की ये उपलब्धि एक प्रेरणा स्रोत का काम करती है। इसलिए भारत के 2008 चीन ओलम्पिक मे हाकी ना खेलने का मलाल देशवासियों को हो या ना हो कम से कम दूसरे हाकी खेलने वाले राष्ट्रों को तो था ही।
2008 का ओलम्पिक अगर भारतीय हाकी के ऊपर लगा एक कलंक था तो 2012 लंदन ओलम्पिक ने उस कलंक को और काला कर दिया। हम ने इस ओलम्पिक मे एक भी मैच नही जीता और अपने सारे मैच हारते हुए (यहाँ तक कि सबसे कमजोर टीम दक्षिण अफ्रीक से भी हार गए) अंतिम स्थान पर रहे।
विश्व कप विजेता, ऐशियन गेम्स विजेता और अन्य उपलब्धियां।
आठ बार के ओलम्पिक चैम्पियन होने के अलावा हम एक बार के विश्व विजेता भी रह चुके है। साथ ही दो बार के ऐशियन गेम्स विजेता और दो बार के ही एशिया कप विजेता भी रह चुके है। इसके अलावा कामनवैल्थ गेम्स मे भी हमारा प्रदर्शन शानदार रहा है। एक बार ही आयोजित ऐफ्रो ऐशियन गेम्स मे भी हमने स्वर्ण पदक जीता था। अंतराष्ट्रीय स्तर जितनी उपलब्धियां हमने हाकी मे हासिल करी है उतनी किसी भी टीम स्पर्धा वाले खेल मे हासिल नही करी।
रोचक तथ्य। क्या आप जानते है?
भारत मे राष्ट्रीय खेल दिवस हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद के जन्म दिवस के अवसर पर 29 अगस्त को मनाया जाता है।
1932 ओलम्पिक मे भारत ने एक मैच मे अमेरिका को 24-1 से हराया था। अमेरिका की तरफ से गोल भी इसलिए हो पाया क्योंकि भारत का गोल कीपर ओटोग्राफ देने के लिए गोल पोस्ट छोड कर चला गया था। इस रिकार्ड को टूटने मे सात दशक का समय लगा।
मेजर ध्यान चंद के खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हे जर्मन टीम को प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया था जिसके बदले मे एक बडा सैनिक पद उन्हे मिलना था। मेजर ध्यान चंद ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था।
हाकी मे पिछडने की मुख्य वजह।
भारतीय हाकी के गिरे हुए स्तर की मुख्य वजह हाकी के खेल मे हुई तबदीलियां है। इसमे सबसे बडी तबदीली है कि काफी समय से हाकी के मैच अब टर्फ के मैदान पर होते है। जब यूरोपियन देश घास के मैदान पर भारत को हराने मे नाकामयाब रहे तो उन्होने अपनी टर्फ के मैदान पर हाकी खेलने के प्रस्ताव की सिफारिश करी। और जब से ये लोग टर्फ के मैदान पर उतरे है भारतीय हाकी इनके सामने टिक नही पाई है। क्योंकि भारत मे निचले स्तरों पर अभी भी हाकी घास के मैदान पर ही खेली जाती है। सिर्फ बडे स्टेडियमो मे ही टर्फ के मैदान उपलब्ध है।
हाकी की लोकप्रियता मे कमी एक और वजह क्रिकेट की बढती हुई लोकप्रियता है। 1983 की विश्व कप जीत के बाद से इस खेल मे लोगो की अभिरुचि एकदम से काफी बढ गई थी। अब तो हालात ये है कि ये खेल भारत मे एक धर्म का रुप ले चुका है। इस खेल मे पैसे और शोहरत को देखते हुए हर कोई अपने बच्चों को क्रिकेटर ही बनाना चाहता है। हाकी खेलने के लिए उन्हे कोई प्रेरित नही करता।
प्रयास जारी है और उम्मीदें बरकरार।
2008 ओलम्पिक के बाद से भारतीय हाकी के कर्ता-धर्ताओ की नींद टूटी। और उन्होने इस खेल मे सुधार के लिए प्रयास आरम्भ किए। विदेशी कोच बुलाए गए। साथ ही 2008 ओलम्पिक के रजत पदक विजेता इटली के एक खिलाडी Shanti Marella ने एक प्रोग्राम stick2hockey के अंतर्गत भारत आकर हाकी खेलने वाले स्कूली बच्चो को खास प्रशिक्षण दिया। देश मे छिपी हुई प्रतिभाओं को बाहर लाने के लिए विदेशी भी हमारी मदद करने को तैयार है। इनके अलावा आई पी एल की ही तर्ज पर अब हाकी इंडिया लीग का आयोजन किया गया है। इस लीग को अब दो साल हो चुके है।
लेकिन जब तक अवाम इस खेल से अपने आप को नही जोड पाएगा तब तक हाकी और इसके खिलाडियों को प्रेरणा और मनोबल नही मिल पाएगा। इसलिए सभी देशवासियों को अपने राष्ट्रीय खेल को सम्मान देना चाहिए। उम्मीद करता हूं कि मेरे इस लेख से आप लोगो के मन मे हाकी के प्रति थोडी बहुत रुचि उत्पन्न हो गई होगी और इस साल हो रहे हाकी वलर्ड कप मे आप अपने देश को भरपूर समर्थन देंगे।
Rating - 56/100
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My Love for Comics
(Akash Soam)
कॉमिक्स मेरे बचपन का अहम् हिस्सा थी | बहुत सारी विषमताओं के बावजूद, बचपन को रंग बिरंगा और यादगार बनाने में कॉमिक्स का अहम् रोल रहा हैं | कॉमिक्स को अलग करके कम से कम मेरे बचपन को तो परिपूर्ण नहीं कहा जा सकता | बड़े हुए तो, ज़िंदगी की उलझनें बढ़ी और कॉमिक्स कहीं पीछे छूट गयी | लेकिन अच्छी यादों की तरह, दिल का एक कोना कॉमिक्स के लिए रिज़र्व ही रहा | 5-6 महीने पहले, जब फेसबुक के माध्यम से ध्रुव को बनाने वाले अनुपम सिन्हा सर से मुलाकात हुई, तो बचपन की बहुत सारी यादें फिर से ताज़ा हो गयीं |
थोड़े दिन पहले कॉमिक्स फेस्ट 2013 आयोजित किया गया | जैसे ही मुझे फेसबुक के माध्यम से फेस्ट के आयोजन का पता चला, मैंने खुद को फेस्ट के लिए रजिस्टर करा लिया | फेस्ट दो दिन के लिए था | जोकि दिल्ली हाट प्रीतमपुरा में आयोजित किया गया था | मैं बस पहले दिन ही जा पाया | दिल्ली हाट में प्रवेश करते ही मानों कॉमिक्स का संसार शुरू हो गया था | शुरुआत में ही नागराज और ध्रुव के बड़े बड़े पोस्टर्स लगे थे जो असल में बता रहे थे कि यहाँ से अब उनका राज्य शुरू होता है |
कॉमिक्स संसार में प्रवेश करते ही, दायीं-बायीं दोनों तरफ कई कॉमिक्स स्टाल लगे हुए थे | जिन पर सैकड़ों लोग अपनी-अपनी पसंद की कॉमिक्स खरीद रहे थे | मेरी सबसे पहली मुलाकात आदरणीय चाचा चौधरी से हुई | सैकड़ों कॉमिक्स के कवर पेजों पर चाचा की सदाबहार मुस्कान साफ़ साफ़ कह रही थी कि इक्कीसवीं सदी के कंप्यूटर चाहे कितने भी तेज़ हो जाएँ लेकिन चाचा के सामने फेल ही रहेंगे, क्योंकि "चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज़ चलता है" |
चूँकि मैंने 90 के दशक में ही कॉमिक्स पढ़ना बंद कर दिया था इसलिए कई स्टाल्स की कॉमिक्स मेरे लिए नयी थी | लेकिन उन कॉमिक्स में इक्कीसवीं सदी का नयापन साफ-साफ़ झलक रहा था | अंत में मेरी पसंदीदा राज कॉमिक्स का स्टाल था | जहाँ हज़ारो की संख्या में राज कॉमिक्स के सुपरहीरोज़ की कॉमिक्स मौजूद थी | सबसे अधिक कॉमिक्स प्रेमी भी इसी स्टाल पर अपने-अपने पसंदीदा हीरो की कॉमिक्स खरीद रहे थे |
ध्रुव से बचपन से मेरा एक अलग तरह का लगाव रहा है | वो मेरा पसंदीदा हीरो है | स्टाल पर मैंने ध्रुव की अब तक की सारी कॉमिक्स की लिस्ट देखनी चाही, मगर वो मुझे नहीं मिल सकी, शायद वो वहाँ उपलब्ध ही नहीं थी | मैं असल में देखना चाहता था कि मैंने ध्रुव की कितनी कॉमिक्स पढ़ी हैं, और उसके बाद कितनी कॉमिक्स आयी है | पहले ऐसी लिस्ट लगभग सभी कॉमिक्स के कवर पेज के पीछे होती थी | सुपरहीरोज़ में भी, बदलते वक्त के साथ काफी बदलाव आये हैं | 90 के दशक में ध्रुव के बाल एक जेंटलमैन की तरह चिपके रहते थे, लेकिन आज Cool Dude की तरह हवा में लहराते हैं | वैसे समय के साथ बदलाव करना समय की ही मांग होती है |
वहाँ बहुत लोग ऐसे थे जो अपने बच्चों को नागराज और ध्रुव जैसे सुपर हीरो से मिलवाने लाये थे | लेकिन जिन रंग बिरंगी किताबों के लिए हम दीवाने थे, आज स्मार्ट फ़ोन के युग में वो बच्चों को शायद कुछ कम पसंद आतीं हैं |
फेस्ट को आकर्षित बनाने के लिए आयोजकों ने पूरी तैयारी की थी | कुछ registered लोगों को गिफ्ट बैग भी दिया गया | मुझे भी मिला | क्योंकि मैंने भी खुद को register करा लिया था | कुछ लोगों को बैग के साथ एक टी शर्ट भी दी गयी | गिफ्ट बैग के साथ, दोनों दिनों के चाय पानी के लिए कूपन भी दिए गए थे | स्टेज पर भी कई प्रोग्राम्स रखे गए थे | हालाकिं मैं 3-4 ही देख पाया | जिसमें से एक शिवाजी आर्यन का कॉमेडी शो था | जिसने लोगों को खूब आनंदित किया | स्टेज पर कई सुपर हीरो के हवा के बुत भी खड़े किये गए जो बहुत ही आकर्षित थे | कुछ लोग अपने पसंदीदा हीरो की वेषभूषा धारण किये हुए थे और लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे |
कॉमिक्स फेस्ट में जाकर मुझे लगा कि, ऐसे फेस्ट को आयोजित करने का मकसद, भारतीय कॉमिक्स के प्रति लोगों का interest बढ़ाना है | 90 का दशक इंडियन कॉमिक्स का स्वर्ण युग कहा जा सकता है | जब कॉमिक्स के लिए मेरे जैसे हज़ारों लाखों लोगों का दीवानापन चरम पर था | लेकिन उसके बाद आने वाली पीढ़ियों में इंडियन कॉमिक्स के लिए लगाव कम हो रहा है | आने वाली पीढ़ियों में इंडियन कॉमिक्स को एंटरटेनमेंट का एक बड़ा सोत्र बनाये रखने के लिए, कॉमिक्स फेस्ट जैसे Event का बड़े स्तरों पर आयोजन बहुत जरूरी है |
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